Friday, October 31, 2008

यह कविता बिना doggie के सम्भव नही थी (also known as Aashish Gupta, our immediate senior @ IIT MADRAS) । आशीष ने हमको फॉर्मेट दिया की कविता कैसे लिखी जाए और सोचने के लिए प्रेरित भी किया । विचार हमारे है।



चलो लाल फीते तोडे
बंद दीमागों को खोले
चलो कुछ काम भी करना शुरू करे
बंद हड़ताल खाली कारखानों को भूल जाये
खोखले विचारों के निर्वात से जनता को मुक्त कराये
झोले कुरते और चप्पलों मे बधें इंसानों को
चलो अब कुछ नया सस्ता मेड इन चाइना पहनाये
चलो मार्क्स लेनिन स्तालिन और माओ के चेलो को
वास्तविकता के दो जाम पिलाये
चलो आकाश मे जन्नत ढूँढने वालों को
धरती की एक सैर पर ले जाएँ
चलो किसी लाल बुद्धिजीवी को पागलखाने ले जाएँ
चलो समाज को नया भविष्य नयी दिशा दे
नए विचार नए औजार नए बाजार दे
चलो अब आगे बढे दुनिया को जीते
दुनिया के पार संसार को भी
अपनी मुट्ठी मे ले
चलो रे साथी
इस रक्त रंजित प्रदूषित दुनिया को
अब फिर से हरा करे
यही पर जन्नत बनाये
और एक शाश्वत शांति स्थापित करे
फिर एक दिन ही नहीं
हर दिन दिवाली ईद बड़ा दिन मनाये

1 comment:

साळसूद पाचोळा said...

चलो मार्क्स लेनिन स्तालिन और माओ के चेलो को
वास्तविकता के दो जाम पिलाये
.
.
too realistic ....